श्रीभगवानुवाच | पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: | नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥5॥
(पार्थ) हे पार्थ! (अथ) अब तू (मे) मेरे (शतशः, सहस्त्राशः) सैकड़ों हजारों (नानाविधानि) नाना प्रकारके (च) और (नानावर्णाकृतीनि) नाना वर्ण तथा नाना आकृतिवाले (दिव्यानि) अलौकिक (रूपाणि) रूपोंको (पश्य) देख।
श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृतिवाले अलौकिक रूपों को देख।
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