यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च | न विमुञ्चति दुर्मेधा धृति: सा पार्थ तामसी ॥35॥
(पार्थ) हे पार्थ! (दुर्मेधाः) नीच स्वभाव वाला (यया) जिस (स्पप्नम्) निंद्रा (भयम्) भय (शोकम्) चिन्ता (च) और (विषादम्) दुःखको तथा (मदम्) नशे को (एव)भी (न,विमु×चति)नहीं छोड़ता (सा)वह (धृतिः)भक्तिधारणा (तामसी) तामसी है।
हे पार्थ! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धारण शक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिंता और दु:ख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात धारण किए रहता है- वह धारण शक्ति तामसी है।
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